रिपोर्ट में दावाः पाकिस्तान के लोगों का अपनी ही सेना से उठा भरोसा

इस्लामाबाद : पाकिस्तान के लोगों का उसकी सेना से भरोसा उठता जा रहा है।  ग्रीक सिटी टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार   पाकिस्तानी सेना ने सशक्त होने  का जो मुखौटा चढ़ा रखा है, वो अब उतरता जा रहा है और लोगों का उस पर विश्वास मिटता जा रहा है।  भारत के साथ युद्धों में जीत के झूठे दावों का प्रचार हो या कारगिल ऑपरेशन में अपनी कैजुएल्टी को छिपाने की बात हो, इन सब को लेकर नरेटिव कंट्रोल पाक सेना के  दावों की पहचान कर रहा है।

रिपोर्ट के अनुसार पाक सेना ने अपने नागरिकों की नजर में हमेशा एक अधिक अनुशासित  और कुशल संगठन होने का एक मुखौटा बनाए रखा जो अब उतरने लगा है। पाकिस्तान की राजनीति फ्रैचर्ड और डायस फंक्शनल है, जो सेना को देश पर अत्यधिक नियंत्रण करने की अनुमति देती है। पाक सेना देश में आंतरिक और बाहरी सहित पर कई मोर्चों का प्रबंधन कर रही है। “हेयरड्रेसिंग को छोड़कर इस देश में सेना हर व्यवसाय में है। सूचना और वैश्विक नेटवर्क के तेजी से बदलते परिवेश में सेना के सीनियर अधिकारी भूमि, आवास, वाणिज्यिक उपक्रमों में शामिल होने से लेकर अवैध संबंधों तक के घोटाले में संलिप्त हैं।

 

आंतरिक रूप से यह बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में आंतरिक सुरक्षा अभियानों में शामिल है। यह COVID-19 और घरेलू कानून भी संभाल रही है। ग्रीक सिटी टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार बाहरी रूप से अफगानिस्तान में उसके सैनिकों की  भूमिका के साथ-साथ भारत और अफगानिस्तान के साथ सीमा तनाव ने उन पर शारीरिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालना शुरू कर दिया है। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी की ‘अच्छे तालिबान’ और ‘बुरे तालिबान’ के रूप में दोगली नीतियां संकट को और बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं।  पॉल एंटोनोपोलोस ने ग्रीक सिटी टाइम्स में एक लेख में कहा पाकिस्तानी सैन्य रैंक और  कट्टरता ने सैनिकों और अधिकारियों के मन में समान रूप से अराजकता पैदा कर दी है।
एंटोनोपोलोस ने कहा  अब अधिकारी वर्ग और  सैनिकों के बीच विवाद दिखाई देने लगा है। जबकि जनरल सेवानिवृत्ति से पहले और बाद में दोनों ही तरह के आकर्षक पदों के लिए लड़ने में व्यस्त हैं, सैनिक के कल्याण की अनदेखी की जा रही है। सीमाओं पर बढ़ती कैजुएल्टी और आंतरिक सुरक्षा अभियान सैनिक की कमान पर उसके विश्वास को कम कर रहे हैं। ग्रीक सिटी टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार  इन सभी कारकों का प्रभाव अब स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है।  पिछले दो महीनों में ही सेना को बलूच (बाजवा की रेजिमेंट) की दो अलग-अलग पैदल सेना रेजिमेंटों से जुड़े फ्रेट्रिकाइड की दो घटनाओं का सामना करना पड़ा है। पहली घटना में 8-9 मई को बलूच रेजीमेंट के एक जवान ने 71 पंजाब रेजीमेंट के डाइनिंग हॉल में अपने साथियों पर फायरिंग कर दी जिस कारण से 9 सैनिकों की मौत हो गई और छह घायल हो गए। एक अन्य घटना में, लाहौर क्षेत्र में एक बलूच इकाई के एक सैनिक की उसके तथाकथित साथियों ने गोली मारकर हत्या कर दी गई। इन घटनाक्रमों ने पाकिस्तान की सेना को उसके नागरिकों व  उसके सैनिकों दोनों की सीधी जांच के दायरे में ला दिया है। सूचना क्रांति के युग में  सेना के लिए अपने अवगुणों को अपने लोगों और अपने नागरिकों दोनों की नज़रों से छिपाना अधिक चुनौतीपूर्ण होगा।