बैलट वार 24 का आगाज: INDIA राहुल के साथ, NDA मोदी के हाथ।

एक अकेला सब पर भारी खुद ही कह, खुद की पीठ खुद ही ठोक स्वघोषित 56 इंची सीना भरे संसद में ठोकने वाले अंतर्राष्ट्रीय चुनाव प्रचारक के रूप में स्थापित भारत के एक मात्र नेता जिन्हें भारत ही नहीं अमेरिका में भी चुनाव प्रचार करने की महारथ हासिल है, अबकी बार ट्रम्प सरकार का नारा अमेरिका की धरती पर चिल्ला चिल्ला कर लगा ट्रम्प का बोरिया बिस्तर बंधवाने वाला मोदी आखिर इंडिया को एनडीए से हराने के लिए 38 दलों की बैसाखी हाथ में थाम चुनावी चाल चलने को क्यों मजबूर हुए? यह एक खुला रहस्य है।
38 दलों का झुंड बना इंडिया पर हमला करने की इस नई रणनीति में खुद को सबसे ऊपर सबसे बड़ा राजनीतिक दल कहने वाली पार्टी में खलबली क्यों है? तू भी आजा तू भी आजा बस मेरा कुनबा बढ़ा जा की बोली लगाते पूरे देश में घूम, दलों को तलाश जोड़ने की मशक्कत में मशगूल हैं। क्यों दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी उन दलों से भी दिल मिलाने को लाचार नजर आती है जिनका देश के सदन में खाता भी खुला नहीं। क्या यह मानसिक राजनीतिक रणनीतिक हताशा नहीं? तो क्यों कल तक सब पर भारी कह छाती चौड़ी करने वाले आज 38 दलों की सवारी को मजबूर नज़र आ रहे हैं।
इस मजबूरी के सफर की शुरुआत तब हुई जब हाड कंपा देने वाले सर्द मौसम में एक सफेद टी-शर्ट वाले आज के गाँधी कल के धोती लँगोटी वाले गाँधी के पद चिन्हों को अपनी मंजिल मान भारत जोड़ने कन्याकुमारी से कश्मीर की राह चल पड़ा, राह में अथाह भीड़ अपार प्यार ने जिस अंदाज से राहुल को देखा, चूमा, गले लगाया, हाथ से हाथ मिलाया राहुल इंडिया की जरूरत का नारा बेहद बुलंद आवाज में बुलन्द किया। इस अंदाज़ को देख अंदाज़ा लगा बीजेपी के चुनावी चाणक्य का सिंहासन डगमगा गया। परेशानी बीजेपी के कुनबे तक ही सीमित नहीं रही बल्कि बीजेपी को जन्म देने वाले आरएसएस दफ्तर नागपुर तक चिंता की लकीरें खिंच गई और उनके मुख से निकला दर्द उनके मुखपत्र पर छप गया। मोदी मैजिक और हिंदू मुसलमान मुद्दे के सहारे 24 की चुनावी वैतरणी अब पार नहीं हो सकती। चुनावी जंग नहीं जीता जा सकता, सरेआम समाज को संघ का यह बताना कि मोदी युग का अंत हो रहा है उनकी लोकप्रियता का ग्राफ हिमाचल और कर्नाटक की हार के बाद धड़ाम है। चमकदार चेहरा जो 2014 में धारदार लच्छेदार वार पलटवार कर सत्ता के शीर्ष तक दल को ले गया उस चेहरे की चमक फीकी पड़ गई है। उसके वादे बेमानी हो गए हैं बातों में दम नहीं नारों में वजन नहीं बचा जनता को अब वो चेहरा लोक लुभावन नहीं लगता। बातों की बरसात हर बार हर बात पर इतनी हो चुकी हैं कि बातों का वजन दिन प्रतिदिन घटता जा रहा है। हालत यह है कि जितना ज्यादा बोल रहे हैं उतना ही ज्यादा नीचे दल को ले जा रहे हैं। हालात ये हैं कि टीवी पर चेहरा देखते ही आम जन की उंगलियां रिमोट ढूंढने लगी हैं। संघ की सरेआम लिखकर सटीक टिप्पणी और सामाजिक सूझबूझ का असर यह हुआ कि अबकी बार ट्रम्प सरकार का नारा अमेरिका की धरती पर अमेरिकियों के सामने जोर शोर से लगा राष्ट्रपति ट्रंप का बोरिया बिस्तर बंधता देखते रह जाने वाले अबकी बार मोदी सरकार कहने का साहस क्यों नहीं जुटा पा रहे? शायद इसीलिए सब को पकड़ लाओ बड़ा और बड़ा एनडीए बनाओ मेरे साथ 38 दल का बल दिखा और उनके साथ महज 26 दिखा यह भ्रम फैलाया जाए कि हम बहुत बड़े हो गये। 56 के सीने को 38 की जरूरत चुनाव से ठीक पहले क्यों आन पड़ी है? राहुल गाँधी के इंडिया से मोदी का एनडीए क्यों ढुलमुल और कमजोर लाचार घिसा पिटा नजर आ रहा है। आंकड़ों के आधार पर समझेंगे तो आसानी से समझ आएगा।
बीजेपी ने कुल 37 ऐसे दल अपने साथ बड़ी जुगत से जोड़े हैं जिनकी राजनैतिक बिसात सुन आप सन्न रह जाएंगे। इन 37 दलों को सिर्फ दो करोड़ दस लाख वोट मिले हैं जिसका मतलब हर दल में हिस्से ज्यादा से ज्यादा, जबकि दूसरी ओर राहुल गाँधी ने अपने साथ मोदी के 37 के बजाय सिर्फ 25 दल ही अब तक जोड़े हैं जिनको देश ने 13 करोड़ दस लाख वोट देकर नवाजा है। मोदी के गठबंधन एनडीए के दलों को कुल दो करोड़ दस लाख मत ही मिले है जबकि राहुल गाँधी के गठबंधन इंडिया के 25 दलों को तेरह करोड़ दस लाख वोट से नवाजा जाना यह बताने को काफी है कि राहुल का इंडिया मोदी के एनडीए पर कितना भारी है। इंडिया में भले ही दलों की संख्या 25 मात्र है किंतु सच यह है कि वह मोदी के एनडीए से 11 करोड़ वोट से आगे है। यही इंडिया की जन मत शक्ति है जो बीजेपी को बेचैन कर रही है, यह सोच ही बीजेपी का जोश ठंडा करने को काफी है।
बीजेपी के छाता तले जुटे इन 37 दलों में कमाल की बात यह है कि 25 ऐसे दल जोड़े गए हैं जिनका संसद में खाता खुलना शेष है। वह बीजेपी के कमल का कैसे सहारा बन संसद के साथी बनेंगे? कमल दल को संसद में कैसे पहुंचाएंगे? कैसे उसकी सरकार बनाएंगे? यह खुद एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। जबकि इनके साथ सात ऐसे दल हैैं जिनके पास सांसद के रूप में एक ही शख्स है मतलब साफ है 32 दल मिला कर महज सात सांसद ही जुटा पाया अपने पास मोदी समूह। इतने कमजोर साथी तलाशना मजबूरी था या फिर जरूरी यह तस्वीर समझाने को काफी है।
काँग्रेस के साथ 25 दल ही नहीं 13 करोड़ नए मतदाताओं का जुड़ना हाथ को इंडिया का सरताज़ तो बनाता ही है इसके साथ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का सरेआम ऐलान “मेरा फेवरेट राहुल गाँधी” यह उदघोष साफ करता है कि 24 का बैलट बार राहुल के इंडिया और मोदी के एनडीए से होगा इंडिया को हराने के लिए एनडीए कैसे नारे गढ़ेगा, इंडिया के सामने कैसे बढ़ेगा, हालांकि कुछ नासमझ भक्ति के रंग में डूबे नेताओं ने कहना शुरू कर दिया है कि मोदी जी इंडिया को ध्वस्त कर देंगे, इंडिया को हरा देंगे, इंडिया मोदी से बड़ा नहीं हो सकता आदि आदि। ऐसे वाक्य बोलने से पहले बीजेपी के नेताओं को एक सलाह दी जानी चाहिए इंडिया मतलब देश है, इंडिया मतलब राहुल गांधी नहीं है, इंडिया पर जुबानी वार करने से पहले सोचने समझने रुकने की जरूरत है। इंडिया के खिलाफ एक एक शब्द क्या भारत के खिलाफ बोला गया शब्द मालूम नहीं होगा। देखना होगा क्या राहुल के इंडिया को मोदी का एनडीए हरा पाएगा? रणनीतिक रूप से तो आज आसान नहीं लगता। नाम इंडिया ही वरदान बन सामने है जो राहुल गाँधी की पहली रणनीतिक जीत है, यह आगाज़ चुनावी जीत की मजबूत नींव बन आज देश के सामने है। तय मतदाताओं को करना है कि वो इंडिया के साथ हैं या एनडीए के हाथ।