Shiv Kumar Bilgrami: बड़े व्यक्तित्व के धनी हैं शिवकुमार बिलगरामी, कवि के साथ साथ एक सच्चे मानवता प्रेमी। जर्नलिज्म टुडे की टीम द्वारा यहां उनका संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया है।
शिवकुमार बिलगरामी हिंदी - उर्दू में काव्य रचना करने वाले वर्तमान दौर के एक सुविख्यात गीतकार और शायर हैं यहां उनकी शायरी की कुछ झलकियां अपने पाठक के लिए।

नई दिल्ली: शिवकुमार बिलगरामी हिंदी – उर्दू में काव्य रचना करने वाले वर्तमान दौर के एक सुविख्यात गीतकार और शायर हैं। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के हरदोई जनपद के बिलग्राम कस्बे के निकट एक गांव में हुआ था। इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बीजीआर इंटर कॉलेज बिलग्राम से पूर्ण की। तत्पश्चात उच्च शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से यह लखनऊ आ गए और यहीं से इन्होंने अपनी बीए और एमए की पढ़ाई पूरी की। लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में एम ए करने के पश्चात यह सिविल सर्विस की तैयारी करने के उद्देश्य से दिल्ली आ गए।
यहां इन्होंने भारतीय संसद अर्थात लोकसभा में प्रथम श्रेणी राजपत्रित अधिकारी के रूप में सर्विस ज्वाइन की और यहीं से अक्टूबर 2023 में निदेशक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं।
शिवकुमार बिलगरामी के दो ग़ज़ल संग्रह – नई कहकशां और “वो दो पल” – प्रकाशित हो चुके हैैं। “वो दो पल ” शिवकुमार बिलगरामी (Shivkumar Bilgrami) द्वारा लिखी गई ग़ज़लों का एक बहुचर्चित ग़ज़ल संग्रह है । इस ग़ज़ल संग्रह को वर्ष 2018 में प्रकाशित किया गया था। इस ग़ज़ल संग्रह में कुल 101 ग़ज़लें हैं जिनमें से अधिकतर ग़ज़लों को देश-विदेश के कई नामचीन गायकों द्वारा गाया जा चुका है।
इस ग़ज़ल संग्रह को वर्ष 2018 में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा अदम गोंडवी सम्मान से सम्मानित किया गया। इस ग़ज़ल संग्रह से संगीतबद्ध की गई ग़ज़लें यूट्यूब चैनल Musictower MT सहित कई अन्य चैनलों पर उपलब्ध हैं ।
अपनी शिक्षा के दौरान शिवकुमार बिलगरामी ने हिंदी , संस्कृत , अंग्रेजी और उर्दू साहित्य का गहराई से अध्ययन किया । इसके अतिरिक्त भारतीय इतिहास , राजनीति विज्ञान , सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों का भी इन्होंने विशद अध्ययन किया । आरंभ काल से ही शिवकुमार बिलगरामी का झुकाव धर्म और अध्यात्म की ओर रहा है इसलिए इन्होंने धर्मग्रंथों का भी गहराई से अध्ययन मनन किया है जो कि इनके लेखन में यत्र तत्र परिलक्षित होता रहता है । शिवकुमार बिलगरामी ने सामाजिक विषमता, स्त्री विमर्श , बिखरते प्राचीन मूल्यों के प्रति चिंता , महत्वहीन होते जा रहे मानव संबंध , परिवार में बिखराव , अकेलापन , प्रवासन की समस्या , प्रकृति संरक्षण, समाज में व्याप्त स्वार्थपरता , राजनीतिके साथ-साथ देश भक्ति , प्रेम और अध्यात्म जैसे विषयों पर बहुत ही जिम्मेदारी से लिखा है । शिवकुमार बिलगरामी के लेखन की एक विशेषता यह है कि उनके काव्य में बहुत अधिक सटीकता और कसाव है।
वर्तमान दौर में यह कहीं अन्यत्र देखने को नहीं मिलता। उनके द्वारा लिखित श्री गणेश स्तुति , श्री राम स्तुति , शिव स्तुति , हनुमत ललिताष्टकम् , जय हिंद वंदे मातरम और पृथ्वी मंथन हिंदी काव्य की सर्वोत्कृष्ट कृतियों में से हैं ।
शिवकुमार बिलगरामी के गीत ग़ज़लों को अनुराधा पौडवाल , के एस चित्रा , जसपिंदर नरूला , हेमा सरदेसाई , महालक्ष्मी अय्यर , साधना सरगम , सुष्मिता दास , आख्या सिंह , सुरेश वाडेकर , शाद ग़ुलाम अली , कैलाश खेर , शान , रियाज़ खान ,राजेश सिंह ,निशांत अक्षर और सरिता सतीश मिश्रा , दक्ष और सक्षम जैसे वर्तमान दौर के मशहूर जिकन द्वारा गाया गया है।
(1)
शिवकुमार बिलगरामी की कुछ प्रमुख रचनाएं जिसे आप भी खूब पसंद करेंगे:
कभी जब गाँव जाता हूँ तो बचपन ढूँढता हूँ मैं
नये घर में पुराने घर का आँगन ढूँढता हूँ मैं
पुराने घर की दीवारों में दिखता है अगर ताख़ा
तो उस ताख़े में अपना टूटा दरपन ढूँढता हूँ मैं
मेरे बचपन का कोई दोस्त आता है अगर मिलने
तो उसके दिल में बचपन का सगापन ढूँढता हूँ मैं
गुजरता हूँ कभी मैं गाँव की गलियों से होकर जब
तो उन गलियों में पहले सा खुलापन ढूँढता हूँ मैं
महकते आम का इक पेड़ है जो गाँव में अब तक
लिपट कर उसकी शाखों से लड़कपन ढूँढता हूँ मैं
कहानी जिस गड़े धन की सुनाती थी मुझे दादी
अभी भी गाँव भर में वो गड़ा धन ढूँढता हूँ मैं
कभी जब देखता हूँ मैं डगर में खेत सूखे तो
जो हफ़्तों तक बरसता था वो सावन ढूँढता हूँ मैं
(2)
ध्यान में इक संत डूबा मुस्कुराए
कैसे दुनिया को नई दुनिया दिखाए
एक भंवरा रोज़ अपना सर खपाए
फूल को वापस कली कैसे बनाए
कागज़ों की तितलियों में रंग भर कर
बच्चा सोचे अब इन्हें कैसे उड़ाए
भागा भागा फिर रहा बादल गगन में
आज वह बिजली कहां किस पर गिराए
सुब्हदम है ओस की इक बूंद व्याकुल
कैसे ख़ुद को भाप होने से बचाए
(3)
राजभवनों में बने कमरों की चाहत और है
आठ बाई आठ के कमरों की हसरत और है
ज़िन्दगी कटने को कट जाती है नफ़रत में मगर
प्यार से लबरेज जीवन की हक़ीक़त और है
यूं तो हैं पैसा कमाने के हज़ारों रास्ते
इल्म से पाई गई दौलत की बरक़त और है
मुल्क मज़हब पर नहीं इंसानियत पर ध्यान दें
इसकी वुस्अत और है औ’र इसकी रंगत और है
बेसहारों के लिए बनना सहारा बाख़ुशी
यह कमाई और है दुनिया की दौलत और है
(4)
आँख ऊपर न उठी लाख उठाई मैंने
रस्मे-फुर्कत बड़ी मुश्किल से निभाई मैंने
उसके जाने का अलम कैसे बताऊँ तुमको
जैसे इस जिस्म से हो जान गँवाई मैंने
उसकी तस्वीर ने फिर आज रुलाया मुझको
उसकी तस्वीर वो फिर आज छुपाई मैंने
अपनी आँखों में तेरा अक्स’ भरे बैठा हूँ
तुझ में खोकर भी सहा दर्दे-जुदाई मैंने
मेरे जज़्बात को समझोगे भला तुम कैसे
फिर न रोने की कसम रो के है खाई मैंने
हमदर्द कैसे – कैसे हमको सता रहे हैं
कांटों की नोक से जो मरहम लगा रहे हैं
मैं भी समझ रहा हूं मजबूरियों को उनकी
दिल का नहीं है रिश्ता फिर भी निभा रहे हैं
भटका हुआ मुसाफ़िर अब रास्ता न पूछे
कुछ लोग हैं यहां जो सबको चला रहे हैं
पलकें चढ़ी ये आंखें जो नींद को तरसतीं
सपने मगर किसी के इनको जगा रहे हैं
मग़रूर आप क्यों हैं हर बात में नहीं क्यों
अब आप फ़ायदा कुछ बेजा उठा रहे हैं
(5)
दुआ लबो पे तो आंखों में बन्दगी रखना
नए अमीर हो तुम ख़ुद को आदमी रखना
उतर न जाए कोई रंज दिल में गहरे तक
हरेक रंज का अहसास काग़ज़ी रखना
कभी-कभी तेरे अपने भी रंग बदलेंगे
ज़रा सी बात पे सबसे न दुश्मनी रखना
हुनर बड़ा है मगर आते-आते आएगा
ग़मों के दौर में ख़ुशहाल ज़िन्दगी रखना
नए हबीब मुबारक हों आपको लेकिन
नए के साथ पुरानों की फ़िक्र भी रखना
(6)
मुलाक़ातें ज़रूरी हैं अगर रिश्ते निभाने हैं
नहीं तो ख़ास रिश्ते भी किसी दिन टूट जाने हैं
‘ज़रूरी काम हैं इतने कि फुर्सत ही नहीं मिलती’
तुम्हारे ये बहाने तो न मिलने के बहाने हैं
अभी से मत उजाड़ो तुम गुलों के इन बगीचों को
अभी तो इन बगीचों के गुलों में रंग आने हैं
गिले-शिकवे तुम्हें भी हैं, गिले-शिकवे हमें भी हैं
हमें अपने दिलों से अब गिले-शिकवे मिटाने हैं
अभी से मत कहो तुम अलविदा,अच्छा नहीं लगता
अभी हमको मुहब्बत के हज़ारों गीत गाने हैं
(7)
इक रात हो ऐसी भी, जिसका न सवेरा हो
चर्चा हो तेरा जब-जब, रौशन तो अँधेरा हो
ख़ामोश हो जग सारा, गहरा-सा हो सन्नाटा
आगोश में हों हम तुम, दो बाँहों का घेरा हो
दो जिस्म हैं हम लेकिन, इक जान हों हम दोनों
अरमान है जो मेरा, अरमान वो तेरा हो
हों बन्द मेरी आँखें , हों बन्द तेरी आँखें
आँखों में मगर फिर भी, उल्फ़त का उजेरा हो
ऐसा हो अजब रिश्ता, ऐसा हो ग़ज़ब रिश्ता
जो प्यार हो मेरा वो, माबूद भी मेरा हो
(8)
किसलिए दिल को यूँ ग़मगीन किये बैठे हो
किस से नाराज़ हो, क्यों होंठ सिए बैठे हो
क्या तुम्हें कोई शिकायत है अभी भी मुझ से
क्या कोई बात मेरी दिल पे लिये बैठे हो
कभी मुझको भी बताओ तो सही ग़म अपना
किसलिए ज़हर का ये घूँट पिये बैठे हो
अपने हाथों में नसीब अपना रखें तो बेहतर
किसके हाथों में नसीब अपना दिये बैठे हो
बंद आँखों से भी ये राज़ बयां होता है
दिल में तुम कौन-सी तस्वीर लिये बैठे हो
(9)
किसलिए दिल को यूँ ग़मगीन किये बैठे हो
किस से नाराज़ हो, क्यों होंठ सिए बैठे हो
क्या तुम्हें कोई शिकायत है अभी भी मुझ से
क्या कोई बात मेरी दिल पे लिये बैठे हो
कभी मुझको भी बताओ तो सही ग़म अपना
किसलिए ज़हर का ये घूँट पिये बैठे हो
अपने हाथों में नसीब अपना रखें तो बेहतर
किसके हाथों में नसीब अपना दिये बैठे हो
बंद आँखों से भी ये राज़ बयां होता है
दिल में तुम कौन-सी तस्वीर लिये बैठे हो
(10)
नींद की गोली न खाओ नींद लाने के लिए
कौन आएगा भला तुमको जगाने के लिए
क़ब्र अपनी खोद कर ख़ुद लेट जाओ एक दिन
वक़्त किसके पास है मिट्टी उठाने के लिए
वो भी अपने..वो भी अपने..वो भी अपने थे कभी
वो जो अपने थे कभी वो थे रुलाने के लिए
अब जो अपने हैं न उनका हाल हमसे पूछिए
हाल भी वो पूछते हैं तो सताने के लिए
किसलिए धड़कन बढ़ी है फिर तेरी मजरूह दिल
क्या अभी कोई बचा है आज़माने के लिए
(11)
जयहिन्द वन्देमातरम्
कोई भी पंथ हो अपना कोई भी हो धरम
सभी मिलकर कहो जय हिन्द वन्दे मातरम्
वतन पर जो हुए कुर्बान उनकी सोचिए
शहीदों ने वतन पर प्राण अपने क्यों दिए
मरे आज़ाद और अशफ़ाक उल्ला खान क्यों
भगत सिंह और सावरकर लड़े किसके लिए
बड़ी मुश्किल से गोरों से हुए आज़ाद हम
सभी मिलकर कहो जय हिन्द वन्दे मातरम्
लगाकर भाल पर मिट्टी वतन को मान दें
ज़रूरत आ पड़े तो देश पर हम जान दें
हमारे धर्म से बढ़कर हमारा देश है
इसे हम धर्मग्रंथों से अधिक सम्मान दें
कसम खाएं न होने देंगे इसका मान कम
सभी मिलकर कहो जय हिन्द वन्दे मातरम्
कभी भी भूलकर हमसे न ऐसा काम हो
कि जिससे देश की छवि विश्व में बदनाम हो
कहीं जाएं मगर दिल में ललक हो एक ही
कि कैसे देश का दुनिया में ऊंचा नाम हो
हमारे देशहित में हो हमारा हर क़दम
सभी मिलकर कहो जय हिन्द वन्दे मातरम्
हमारी एकता का शोर अब चहुं ओर हो
हमारे हाथ में अब एकता की डोर हो
करें हरगिज़ न कोई काम हम ऐसा कभी
कि जिससे एकता की डोर ये कमज़ोर हो
हमें इस देश के परचम , तिरंगे की कसम
सभी मिलकर कहो जय हिन्द वन्दे मातरम्
(12)
शिव स्तुति
कौन दिशा में छुपकर बैठा ओ गंगाधर पर्वतवासी
एक झलक दिखला जा मुझको ढूँढ रही हैं अंखियाँ प्यासी
भव विरुपाक्ष जटाधर तारक तेरे नाम लगें अति सुन्दर
तू ही सोम सदाशिव मेरा तू ही मेरा देव दिगम्बर
तू ही उग्र कपाली मेरा तू ही मेरा गुरु संन्यासी
एक झलक दिखला जा मुझको …
तू ही कवची कृतिवासा है तू ही भर्ग मृत्युन्जय मेरा
खोल नयन हे शर्ब कृपानिधि कर दे मन का दूर अँधेरा
मेरे मन में घोर अँधेरा मेरे मन में घोर उदासी
एक झलक दिखला जा मुझको …
विश्वेश्वर गिरिनाथ अनघ मृड शिव त्रिपुरांतक दक्षाध्वरहर
खंडपरशु शाश्वत प्रमथाधिप गिरिप्रिय हवि कवि शिशु परमेश्वर
तू नटराज त्रिलोचन शंकर तू ही जग का अंतिम लासी
एक झलक दिखला जा मुझको …
(13)
श्री हनुमत् ललिताष्टकम्
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वदनम् ललितम् , वर्णम् ललितम्
वक्त्रम् ललितम् , वस्त्रम् ललितम्
रूपम् ललितम् , दृष्टम् ललितम्
रघुनाथ-प्रियम् सर्वम् ललितम् (1)
केशा: ललिता: भेषा: ललिता:
हस्तौ ललितौ , पादौ ललितौ
हृदयम् ललितम् , उदरम् ललितम्
रघुनाथ-प्रियम् सर्वम् ललितम् (2)
नेत्रम् ललितम् , श्रोत्रम् ललितम्
भालम् ललितम् , तिलकम् ललितम्
अधरम् ललितम् , चिबुकम् ललितम्
रघुनाथ-प्रियम् सर्वम् ललितम् (3)
भक्ति: ललिता , शक्ति: ललिता
रोष: ललित: , तोष: ललित:
चित्तम् ललितम् ,चरितम् ललितम्
रघुनाथ-प्रियम् सर्वम् ललितम् (4)
ज्ञानम् ललितम् , ध्यानम् ललितम्
रिद्धि: ललिता, सिद्धि: ललिता
सत्यम् ललितम् , नित्यम् ललितम्
रघुनाथ-प्रियम् सर्वम् ललितम् (5)
वज्रम् ललितम् , वैरम् ललितम्
वेगम् ललितम् , वारम् ललितम्
अभयम् ललितम् , प्रलयम् ललितम्
रघुनाथ-प्रियम् सर्वम् ललितम् (6)
अचलम् ललितम् , चपलम् ललितम्
मौनम् ललितम् , मुखरम् ललितम्
सत्त्वं ललितम् , तत्त्वं ललितम्
रघुनाथ-प्रियम् सर्वम् ललितम् (7)
स्मृति: ललिता , विस्मृति: ललिता
प्रज्ञा ललिता , विद्या ललिता
नृत्यम् ललितम् , भावम् ललितम्
रघुनाथ-प्रियम् सर्वम् ललितम् (8)
(14)
दुर्गा स्तुति
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जयति जयति जय , जय जगदम्बे
असुर मर्दिनी जय मां दुर्गे
सिद्धिदायिनी मां शतरूपा
परम सुंदरी रूप अनूपा
कृष्णा गौरी चंद्रघटा तुम
तुम ही देवी आदि स्वरूपा
जगत प्रिया शिव शंभु प्रिये
जयति जयति जय जय जगदंबे
अकार उकार मकार प्रणव की
तुम ही सत्त्व , रजस तम तुम ही
तुम ही योग महामाया मां
आदि अंत सब तुम ही जननी
शैलसुते तुम सिंधुसुते
जयति जयति जय जय जगदंबे
चंड मुंड मधु कैटभ हंत्री
महिषासुर मर्दिनि कापाली
शुंभ निशुंभ निकंदनि देवी
रक्तबीज वध करने वाली
आधि व्याधि सब जग की हर ले
जयति जयति जय जय जगदंबे
(15)
गीत – कौन चितेरा
कौन चितेरा चंचल मन से अंतर मन में झाँक रहा है
कौन हमारे मन की ताक़त अपने मन से आँक रहा है
कौन पथिक है अति उत्साही
पथ के जो निर्देश न माने
प्रेम पथो के सत्य न समझे
प्रेम पथों के मोड़ न जाने
कौन हठीला दुर्गम पथ पर मन के घोड़े हाँक रहा है
कौन हमारे…………………….
किसने मेरे सपने देखे
किसको गहरी नींद न आये
कौन उनींदा जाग रहा है
अर्ध निशा में दीप जलाये
कौन विधर्मी तप्त ह्रदय में चाँद रुपहला टाँक रहा है
कौन हमारे……………………….
कौन विरत है खुद के तन से
किसका खुद पर ध्यान नहीं है
किसने दंश न झेले तन पर
किसको विष का ज्ञान नहीं है
कौन सँपेरा साँप पिटारी खोल रहा है ढाँक रहा है
कौन हमारे……..
(16)
गीत – पृथ्वी मंथन
द्रव्य पिपासु नित्य निरंतर करते पृथ्वी मंथन
इसके कारण खतरे में है अपना मानव जीवन
उद्योग क्रांति , इस पृथ्वी पर कैसा संकट लाई
लोभ और लालच ने कैसी मति भरमाई
खनिज तेल का , लौह स्वर्ण का
गैस कोल का , होता रहता दोहन…
इसके कारण खतरे में है अपना मानव जीवन
हम सबकी जीवन शैली से संकट गहराया है
धरणी और धरणीधर पर गहरा संकट आया है
बढ़ते उद्योगों से फैल रहा है रोज़ प्रदूषण
भूमंडल में नित्य विषैली गैसों का उत्सर्जन…
इसके कारण खतरे में है अपना मानव जीवन
हे गंगाधर हम सबका तुम जल्दी बनो सहारा
सागर मंथन विष को तुमने अपने कंठ उतारा
पृथ्वी मंथन के विष को भी अपने कंठ उतारो
या फिर हमको इस विष को पीने का संबल दो
नहीं रहा है गंगाजल भी पहले जैसा निर्मल…
इसके कारण खतरे में है अपना मानव जीवन
द्रव्य पिपासु नित्य निरंतर करते पृथ्वी मंथन
इसके कारण खतरे में है अपना मानव जीवन.
(17)
तुम्हारे सब्ज बाग़ों में हमें सूखा नहीं दिखता
मज़े की बात लेकिन यह कहीं दरिया नहीं दिखता
तुम्हारा वादा था हमसे कि तुम चेहरे खिलाओगे
मगर हमको कोई खिलता हुआ चेहरा नहीं दिखता
तुम्हारे इश्तहारों में तरक़्क़ी की नुमाइश है
मगर हमको तरक़्क़ी का कहीं जल्वा नहीं दिखता
हज़ारों ख़ूबियों के संग यही इक ऐब है तुम में
तुम्हें अपने सिवा जग में कोई अच्छा नहीं दिखता
तुम्हारी रहनुमाई पर भरोसा हम करें कैसे
हमें तुमसे बड़ा जग में कोई झूठा नहीं दिखता
