नए युग का एक ध्रुव तारा: विवान कारुलकर
विवान की प्रतिभा बाल्य काल से ही परिलक्षित होने लगी थी जब वह 10 वर्ष की अल्प आयु में ही नासा की यात्रा कर चुके हैं।
नई दिल्ली: विवान प्रशांत कारुलकर ने केवल 16 वर्ष की आयु में नए युग के वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भारतीय सनातनी ज्ञान से जोड़कर वह उदात्तता प्रदान की है जिसका कोई अन्य उदाहरण नहीं दिखाई देता है।
विवान प्रख्यात उद्यमी प्रशांत कारुलकर एवं शीतल कारुलकर के सुपुत्र हैं। कारुलकर परिवार पीढ़ियों से देश सेवा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। देश के अतिरिक्त इस परिवार ने विदेश में भी अपने उद्यम एवं समाज सेवा के माध्यम से देश का नाम रोशन किया है।
विवान की प्रतिभा बाल्य काल से ही परिलक्षित होने लगी थी जब वह 10 वर्ष की अल्प आयु में ही नासा की यात्रा की ।नासा की इस यात्रा ने नन्हे विवान के मन मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव छोड़ा। इस यात्रा ने विवान के कोमल मन को कौतूहल से भर दिया और उनकी अपनी खोज की यात्रा ने एक नया आयाम प्राप्त किया।इसका परिणाम यह हुआ कि 13 वर्ष की आयु में ही इन्होंने नियर अर्थ ऑब्जेक्ट्स पे एक पेटेंट फाइल कर दिया।
जब से मनुष्य ने इस धरती पर अपने विचारों का आदान-प्रदान करना प्रारंभ किया है तभी से ब्रह्मांड के बारे में जानने और समझने की एक जिजीविषा मनुष्यों में व्याप्त रही है । हर युग में उन परिस्थितियों और काल के अनुरूप दृष्टिवान लोगों ने ब्रह्मांड पर और उसके रहस्यों पर विभिन्न दृष्टिकोण से विचार किया है । विवान ने भी ब्रह्मांड के रहस्यों को इसकी गहराई में जानने और समझने की कोशिश की है। विवान ने जब इस पर गहराई से विचार किया तो यह रहस्य उदघटित हुआ की विज्ञान की अनेक बातें और अनेक सिद्धांत हजारों वर्ष पूर्व वैदिक काल में परिभाषित कर दिए गए थे । यह बात न सिर्फ विवान के लिए बल्कि वर्तमान काल की इस दुनिया को भी आश्चर्यचकित कर देने वाली है । विवान ने वैदिक काल के उन सिद्धांतों को वर्तमान विज्ञान के सिद्धांतों से जोड़ कर देखने का प्रयास किया है। उन्होंने वैदिक ज्ञान तथा नव विज्ञान के बीच की खाई को भरने का भरपूर प्रयास किया है। वह इस दिशा में लगातार आगे बढ़ रहे हैं । यह सर्व विदित है कि सनातन धर्म की शिक्षा दीक्षा की परिपाटी से ही वैदिक काल का ज्ञान हम तक पहुंच पाया है । इसलिए यह कहा जा सकता है कि सनातन धर्म की उन छुपी हुई बातों को भी विवान दुनिया के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं जो अपने आप में ज्ञान के मोती हैं। यह विचार योग्य है की 16 साल की अल्पायु में ही विवान एक पुस्तक के लेखक के तौर पर पहचाने जा रहे हैं उनकी पुस्तक द सनातन धर्म : ट्रू सोर्स ऑफ़ ऑल साइंस ने लेखन की दुनिया में उनको एक अलग स्तर पर पहचान दिलाई है। उनकी इस पुस्तक का विमोचन श्री राम लला तीर्थ क्षेत्र के जनरल सेक्रेटरी श्री चंपत राय जी के कर कमल द्वारा हुआ। इस अवसर पर एक विशेष बात यह भी हुई कि यह पुस्तक विमोचन के साथ ही श्री राम लला के चरणों में प्रस्तुत की गई। यह अपने आप में पुस्तक के लिए एक निराली बात है । यह इस नए लेखक के लिए बड़े ही सौभाग्य की बात है । इससे यह भी पता चलता है कि यह पुस्तक ज्ञान और अध्यात्म के मार्गों को प्रस्तुत करने वाली एक महत्वपूर्ण कृति है।
इस पुस्तक में 46 ऐसे सिद्धांत हैं जो नए वैज्ञानिक खोज का आधार कहे जा सकते हैं। पुस्तक यह भी दावा प्रस्तुत करती है कि सनातन धर्म वह स्रोत है जिससे नए विज्ञान ने जन्म लिया है। इसके साथ ही यह पुस्तक बहुत सी नई खोज के आधार को चुनौती भी प्रस्तुत करती है । पुस्तक यह भी बताती है कि यदि वैदिक सिद्धांतों पर नए वैज्ञानिक खोज को दिशा दी जाए तो यह मानव सभ्यता के लिए बहुत ही उपयोगी होगा।
इंस्टाग्राम पर 1 लाख फॉलोअर यह बताते हैं की विवान न सिर्फ एक विचारक के तौर पर पहचाने जाते हैं बलकि वर्तमान समाज एवं सभ्यता को वैदिक दृष्टिकोण से देखने वाले नए सितारे की तरह पहचाने जाते हैं जिनकी चमक से वर्तमान काल में नई पीढ़ी की आंखें चका चौंध है। विवान ने जीवन दर्शन को एक नए अर्थ में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है और सनातन धर्म को इसका स्रोत बताया है। यह अपने आप में एक महान उपलब्धि है । विवान की पुस्तक ने उन्हें देश-विदेश में एक ऐसी पहचान दी है जिसकी साधारणतह कल्पना नहीं की जा सकती।
महाराष्ट्र के राज्यपाल,मुख्यमंत्री, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के अध्यक्ष जानी-मानी हस्तियां जैसे कि श्री रामनायक और श्री पीयूष गोयल ने भी इस पुस्तक को और इसके लेखक को पूरी तरह सराहा है और अपनी शुभकामनाएं दी हैं।
विवान के इस लेखन कार्य के लिए जिसे दुनिया एक महत्वपूर्ण कारनामा मानती है डिफेंस आर्मी ने एक प्रोत्साहन चिन्ह प्रस्तुत किया है और ममाना है ककीकि इतने अल्प आयु में विवान ने देश और दुनिया को एक नई राह दिखाई है अथवा द सनातन धर्म की शक्ति को विश्व स्तर पर स्थापित किया है। विवान को उनके इस पुस्तक के लिए ब्रहमू समाज ने भी एक विशेष सम्मान से सम्मानित किया है।
विवान की इस पुस्तक द सनातन धर्म : ट्रू सोर्स ऑफ़ ऑल साइंस ने देश की सीमाओं से आगे जाकर विश्व के बड़े संस्थानों में जगह बनाई है। इन संस्थानों में बोस्टन स्विज और लंदन पार्लियामेंट, बीजेपी नेशनल लाइब्रेरी तथा नासा लाइब्रेरी में भी यह पुस्तक रखी गई है। इससे यह प्रमाणित होता है कि यह पुस्तक नई पीढ़ी के लिए एक मार्गदर्शक का किरदार अदा करेगी तथा विवान के आगे की खोज का मार्ग भी प्रशस्त करेगी। विवान की इस पुस्तक को ऐसा माना जाता है किनिकट भविष्य में नए विचारों को सनातन धर्म की आधारशिलाओं में ढूंढने का प्रयास भी माना जाएगा क्योंकि विवान की दृष्टि वृहद है । ब्रह्मांड के रहस्यों को उद्घाटित करने की ओर अग्रसर है । यह भी एक तथ्य है के विज्ञान हमारे कुल प्रश्नों का उत्तर नहीं देती है । जबकि आध्यात्मिक ज्ञान पर आधारित विचार हमें उन तमाम प्रश्नों का उत्तर देते हैं। विवान का यह प्रयास सचमुच अंधकार से प्रकाश की ओर की एक यात्रा है। जिस पर देश और समाज को निश्चित ही गर्व करना चाहिए।
