संध्या अशांति से शांति का मार्ग है -दर्शनाचार्य विमलेश बंसल

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[मामेन्द्र कुमार ]  केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के तत्वावधान में “संध्या से शांति की ओर” विषय पर ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया।यह कोरोना काल में 231 वां वेबिनार था। दर्शनाचार्या विमलेश बंसल ने ओजस्वी सरल ज्ञानमयी वाणी में कहा की सन्ध्या हमारे जीवन का आवश्यक एक ऐसा करणीय नैत्यिक कर्म है जो व्यक्ति को अशांति से शांति की ओर ले जाता है।आज के आपाधापी के युग में विशेषकर इस कोरोना जैसी विकट परिस्थियों में जहाँ जहाँ त्राहि-त्राहि मची हो, सन्ध्या एक सम्बल प्रदान करती है तथा दुखी परेशान तनावग्रस्त व्यक्ति को मानसिक संतुलन प्रदान करती है।यूँ तो सन्ध्या एक उत्तम नैत्यिक कर्म है ईश्वर का सम्यक ध्यान प्रत्येक व्यक्ति के लिए दोनों समय अनिवार्य है ही किन्तु सम्यकरूपेण अर्थ मनन चिंतन के साथ की गई सन्ध्या मंजिल तक पहुंचाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ती।सन्ध्या से आत्मिक ज्ञान के आलोक में कुकर्मों,कुचेष्टाओं, पापवासनाओं से बचते हुए शुभ कर्मों,पुण्यकर्मों की प्रवृत्ति का उत्तरोत्तर विकास होता जाता है जो अंततः साधक के अपने लिए ही नहीं समाज,राष्ट्र के लिए भी हितकर सिद्ध होता है।मनुष्य के अपने कर्तव्य के साथ समाज व ईश्वर के प्रति क्या कर्तव्य हैं उसका बोध सन्ध्या में समाहित है।सन्ध्या से शारीरिक मानसिक और आत्मिक बल की प्राप्ति हो व्यक्ति महान बन उस महान को चारों ओर मनसापरिक्रमा कर निहार सकता है और ईश्वर प्रदत्त प्रतिक्षण प्राप्त सुखों को प्राप्त कर स्वस्थ लम्बा जीवन पा आनंदित हो सकता है।अतः सुख शांति आनंद के अभिलाषी जनों को दोनों समय ईश्वर का सम्यक ध्यान महर्षि दयानंद की निर्मित सन्ध्या विधि पद्धति द्वारा चिंतन मनन पूर्वक अवश्य करना चाहिए,तभी जीवन संतुलित, मर्यादित एकाग्रचित्त स्वस्थ हो आनंदित हो सकता है।इससे बढ़िया अन्य कोई उपासना की पद्धति नहीं हो सकती।

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